धर्म, विज्ञान, तकनीक, और भौतिक सुख-सुविधाओं के क्षेत्र में मनुष्य निश्चित ही प्रगति एवं बुद्धि की पराकाष्ठा को छू रहा है। परन्तु स्वास्थ्य के मामलों में वह भयंकर रूप से पिछडा हुआ, सामान्य बुद्धि के स्तर से नीचे गिरा हुआ, जानवरों से भी बदतर हालत में है जिसका बहुत बडा एक कारण है विकृत, पके हुए आहार एवं औषधियों का सेवन, जो प्रकृति के सरल जीवनदायी नियमों के प्रति नासमझी और उसके अवहेलना का परिणाम ही है।
सारे धर्म और आरोग्य ग्रन्थों का यही निचोड है कि परमात्मा (प्रकृति) के गुणों पर अटूट श्रद्धा और विश्वास एवं उसके नियमों का जीवन में अक्षरशः पालन, हमारे सारे दुःखों से मुक्ति की रामबाण दवा है। परमात्मा की कृति में कहीं भी पूर्णता नहीं है, जिसकी वजह से मनुष्य को अपनी बुद्धि लडाकर उसकी कृति को पूर्ण करना पडे, ये हमारी बहुत बडी अज्ञानता, अहंकार या भूल है। उसके नियमों में एक रूप होकर जीने वाला मनुष्य ही वास्तव में बुद्धिमान एवं सच्चा धार्मिक मनुष्य है।
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